पूरी दिल्ली तो झुलस गई है हिंसा के अंगारों में।
निर्णय लेने में देरी की दिल्ली के दरबारों ने।
कर्तव्य वहन का पालन नेता जिम्मेदारी से करते।
तो रतनलाल पैंतीस मासूम भी दिल्ली में न मरते।
सेंध लगी क्यों आखिर अब तक सत्ता के गलियारों में।
दिल्ली कितनी डरी डरी है दहशत की हुंकारों में।
गर मजहब पर ही इंसा इंसा को कटवायेगा।
तो अपने स्वर्ग से सुंदर हिंदुस्तां को कौन बचायेगा।
ओज कवि महेन्द्र चौधरी।
टीकमगढ मध्यप्रदेश
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