सविता वर्मा "ग़ज़ल"
मुझको अब खुशी से डर लगता है
लब खुलें तो हंसी से डर लगता है।।
कोई आये न आये गम नही इसका
मुझको अब जिंदगी से डर लगता है।।
नाम मेरा किसी लब पे हो न हो
मुझको अब खुदही से डर लगता है।।
बस्तियां उजड़ गयी दिल की यारों
अब तो हर किसी से डर लगता है।।
बात करते है वो मतलब से "ग़ज़ल"
उनकी इसी बेरुखी से डर लगता है।।
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