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अमेरिका में हुई हिंसा से निकले अर्थ

 

सत्यव्रत शुक्ल 

पिछले कुछ दिनों से अमेरिका फिर से सभी की चर्चा में आ गया. पिछले साल हुए राष्ट्रपति चुनाव में वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की करारी हुई थी. ट्रम्प शुरू से चुनावों में धांधली की बात कर रहे थे और वो इन नतीजों को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे. जिस दिन अमेरिकी संसद को जो बाइडेन के नाम की औपचारिक घोषणा करने थी, उसी दिन ट्रम्प समर्थकों ने वहाँ पर हमला कर दिया. कई घंटों तक वहाँ आराजकता बनी रही. पूरी दुनिया को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाले अमेरिका में ऐसा होगा, इसकी किसी ने कभी कल्पना नहीं की होगी. अब भले ही ट्रम्प इस घटना के लिए माफ़ी माँग रहे हो, पर इसका असर आने वाले कई सालों तक रहेगा. 

बसे पहले तो ये समझने की जरूरत है कि ट्रम्प समर्थकों ने जो किया उससे कोई भी लोकतंत्रवादी सहमत नहीं हो सकता. वैसे ये भी सत्य है कि वामपंथी इसी तरह की क्रांति की वकालत कई सालों से कर रहे है. फिर भी इस घटना ने अमेरिका को सबके सामने शर्मिंदा कर दिया है. इस घटना के बाद अमेरिका के दक्षिणपंथियों के लिए समस्याएँ बढ़ने वाली है. अब अमेरिका की राजनीति और समाज में ध्रुवीकरण और तेजी से होगा. वैसे तो भारत अमेरिका के आंतरिक विषयों पर टीका-टिप्पणी नहीं करता है. पर इस बार ऐसा नहीं हुआ. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस घटना की निंदा की. उन्होंने ट्वीट किया. 

https://twitter.com/narendramodi/status/1347009724789653508

वैसे इस बार के अमेरिकी चुनाव ने कई सवाल भी खड़े कर दिए है. जैसे नतीजों को आने में इतना समय लगना. वैश्विक महाशक्ति के रूप में पहचाने जाने वाले देश में अगर इतना समय लगेगा तो इसका कही से भी अच्छा असर नहीं जाता. हर राज्य के अपने अलग नियम. हम भारत में अपने चुनाव आयोग को कितना भी कोस ले पर एक ही दिन में तेजी से सर्वमान्य नतीजे हमारा चुनाव आयोग देता आया है. ये भी सत्य है कि पिछले कुछ समय से विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग पर कई सवाल उठाए है. कई सवाल सही भी है. जैसे इलेक्शन बांड. इसका संतोषजनक उत्तर हमारा चुनाव आयोग अभी तक नहीं दे पाया है.

स पुरे घटनाक्रम में मेरे हिसाब से जो बात सबसे महत्वपूर्ण रही वो है ट्विटर और फेसबुक जैसी कंपनियों की कार्य शैली. ट्विटर ने तो राष्ट्रपति ट्रम्प के ही अकाउंट को बंद कर दिया. यह कह कर कि वो इसके माध्यम से हिंसा फैला रहे है. ट्विटर पहले भी ट्रम्प को अनेक तरह से परेशान करता आया है. ट्विटर के इस कदम से भारत में भी इसको लेकर बहस छिड गयी है. जो कि होनी भी चाहिए. आखिरकार ट्विटर को कितनी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए. पिछले साल जब भारत-चीन विवाद अपने चरम पर था. तब ट्विटर ने भारतीय कंपनी अमूल के एक ट्वीट को हटा दिया था क्योंकि वो चीन विरोधी था. कमाल की बात ये है कि चीन में ट्विटर चलता ही नहीं है. ये भी एक सत्य है कि ट्विटर को जिसे बैन करता होता है कर देता है. जिसे नहीं करना होता नहीं करता. इसी ट्विटर पर कई लोगों ने जमकर नर संहार की बातें तक की है, पर ट्विटर उन पर कोई करवाई नहीं करता. ऐसे में सरकार को चाहिए कि वो ट्विटर और फेसबुक जैसी कंपनियों के अधिकतम अधिकार क्षेत्र तय करें. 

मेरिका में जो कुछ भी हुआ, भारत को भी उससे सीख लेनी चाहिए. सभी भारतीयों को भारत के लोकतंत्र में, संविधान में और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में पूरा विश्वास रखना चाहिए. और सबसे पहले हमारे नेताओं को ये विश्वास होना चाहिए. अंत में, भारतीय लोकतंत्र की जय हो...............

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