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कहानी -- स्वाभिमान


तृषा द्विवेदी "मेघ", उन्नाव, उत्तर प्रदेश

वह पहला ही दिन था जब वर्तिका और देवेश एक-दूसरे से मिले थे। 

हालांकि वो दोंनो ही शोशल मीडिया पर एक दूसरे को वर्षों से जानते थे।

कितनी आसान हो गयी इंटरनेट की दुनिया भी,रिस्तों का बनना और बिछड़ना सब एक खेल जैसा हो गया।

इंतजार भी जैसे किसी जन्नत का रस्ता सा लग रहा था।

 हाँ ,ऐसा ही लग रहा था कि प्यार की मंजिल बस मिलने ही वाली थी।

वर्तिका कुछ इसी तरह के खयालों में खोई हुई जैसे खुद की कोई फ़िल्म देख रही हो !

तभी नजर थोड़ी दूर जाती है और देखते ही समझ जाती है कि वो देवेश ही है जो उसकी ओर आ रहा था।

 देवेश फोन पर बहुत अच्छी-अच्छी बातें करता था,विश्वास जीतना उसके लिए दिलचस्प खेलों में से एक खेल था। वर्तिका बहुत ही खुश थी उससे मिलकर क्योंकि वह समझती थी कि उसकी पसंद जो उसने अंधेरो में की थी वह  दिन के उजालों से भी बढ़कर निकली।

यूँ तो देखने-सुनने में कोई किसी से कम नहीं थे मगर अंदर छुपे गुणों को जान पाना इतना भी कहाँ आसान। 

देवेश कुछ पल बैठ के बात करना चाहता था,साथ कुछ पल बिताना चाहता था, इसके लिए वो कोई अच्छी जगह तलाश रहा था मगर वहाँ कोई पार्क या रेस्टोरेंट जैसा कुछ भी नहीं था।


वर्तिका :  " क्या सोच रहे हैं आप! "

देवेश :  "सोचना क्या यार, यहां तो कोई ऐसी जगह भी नहीं जो कुछ खाने के लिए ले सकूँ ,मुझे बहुत भूख लगी है।"

हँसते हुए देवेश : "देखो वर्तिका तुमसे मिलने के लिए कितना बेसब्र था, बिना कुछ खाये पिये,दौड़ा चला आया।

सुनो, तुम ऐसा करो, बाइक पे बैठो कहीं रेस्टोरेंट चलता हूँ।"

वर्तिका : "नहीं देवेश,देर हो जायेगी,तुम्हें क्या पता मैं किस तरह तुमसे मिलने आ पाई हूँ।"

देवेश:  "अच्छा ठीक है, बैठो तो सही मैं कहीं पास ही देखता हूँ, कम से कम साथ चाय तो पी ही लेते हैं।"


 दोनों चाय की एक छोटी सी दुकान पर रूकते हैं,

 देवेश मन ही मन यह सोच रहा था कि वर्तिका कुछ घण्टे उसके साथ रुके मगर चोरी -छिपे मिलने वाली वर्तिका घबराई हुई थी।


देवेश- "तुम लड़कियाँ इतना घबराती क्यों हो  प्यार करता हूँ तुमसे,शादी करना चाहता हूँ। फिर यार इतना, क्यों डर रही हो ?"

वर्तिका:  "नहीं देवेश ऐसा नहीं,मगर फिर भी मैं नहीं चाहती मेरे खिलाफ कोई कुछ गलत सोचे-समझे।"


असल में वर्तिका देवेश को जितना अच्छा समझती थी वो इतना अच्छा नहीं था।

फिर भी उसकी भोली सी सूरत पर दिल का हार जाना कोई हैरानी की भी बात नहीं थी।

दोनों का मिलने-मिलाने का सिलसिला शुरू हो गया था।

वर्तिका की इच्छा से वर्तिका की माँ देवेश के घर जाकर शादी की बात करती हैं।  


माँ :  " मैं आपके बेटे के लिए अपनी बेटी का रिस्ता लेकर आई हूँ।"

देवेश के पिता जी:  "जी बिल्कुल क्या नाम है आपकी बेटी का ? और क्या करती है ?"

माँ : "जी वर्तिका नाम है,अभी तो उसकी पढ़ाई ही चल रही है।"

पिता : "वर्तिका, आप की ही बेटी है, देवेश की वो फ्रेंड है,बताया था उसने हमें।"

माँ :  "जी हाँ, मैं चाहती हूँ जब बच्चे खुश हैं तो हमें यह रिस्ता कर देना चाहिए।

आखिर कहीं न कहीं तो करना ही होगा ।"

पिताजी: "ठीक है, हमें कोई आपत्ति नहीं है 

मगर क्या है कि उसकी नौकरी लगने को है तो मैं चाहता हूँ, बाद में ही शादी करें।"

माँ: "यह तो बहुत अच्छी बात है मगर जब सब ठीक है तो हमें देर नहीं करनी चाहिए।

अगर आप चाहें तो शादी की बात पक्की कर लेते हैं और इंगेजमेंट हो जाये तो और भी अच्छी बात है।"

पिता जी: "देखिए आप तो जानती हैं मेरा एक ही बेटा है और माता-पिता के लिए बेटे के लिए कुछ अरमान होते हैं मुझे सारे सौख 

देवेश की शादी में ही पूरे करने हैं।

ऐसा करें आप एक-दो महीने रुक जाएं फिर जैसा होगा हम बताते हैं।"


वर्तिका की माँ अपने घर लौट आती हैं और

 वर्तिका से कहती हैं कि देवेश के पापा ने एक महीने बाद बात करने के लिए कहा है ।

अगले महीने देवेश की नौकरी लग जाती है और तभी एक रिस्ता भी आता है, लड़की के पिता सरकारी नौकर थे और उनकी बेटी सपना भी पढ़ी-लिखी और बहुत सुंदर थी,वो बेटी की शादी में खूब पैसा खर्च करने को तैयार थे, सपना और देवेश एक ही कॉलेज में साथ पढ़े थे,सपना भी देवेश को पसंद करती थी वह चाहती कि उसका विवाह देवेश से हो।

वर्तिका नौकरी की खबर मिलते ही बहुत खुश होती है और देवेश से कहती है अब तो तुम्हारी नौकरी लग गई,अब बताओ हम शादी कब कर रहे हैं। 


देवेश : "यार यह सब तो घरवालों का काम हैं,वो लोग देख लेंगे,हम क्यों चिंता करें।'

वर्तिका :  "देखो देव तुम नहीं जानते मैं तुम्हें कितना चाहती हूँ खुद से भी ज्यादा तुम्हें प्यार करती हूँ,अगर तुमसे बिछड़ना पड़ा तो अब तुमसे बिछड़ कर जी नहीं पाऊँगी।"

 इस पर देवेश कहता है- "वर्तिका तुम्हें क्या लगता है कि सिर्फ तुम्हीं मुझसे प्यार करती हो और मैं नहीं करता। मैं भी तुम्हें बहुत चाहता हूँ मगर पापा के खिलाफ तो नहीं जा सकता वो जैसा ठीक समझेंगे वैसा ही करेंगे।

वर्तिका:  "हाँ मगर उन्होंने समय माँगा था अब तो उनका सपना पूरा हो गया अब वो माँ से बात कर सकते हैं।"

देवेश हँसते हुए-"अरे देविका मेरे पापा आपके माँ से मिलने थोड़े आएंगे।

माँ को ही फिर से आना होगा बात करने और फिर पापा को जो सही लगेगा वो करेंगे।"


सपना देखने में बहुत सुंदर और नए जमाने की सोच रखने वाली थी।

वहीं देविका नए जमाने से कम पुराने जमाने के तौर-तरीकों से ज्यादा जुड़ी हुई थी साथ ही संस्कारी व स्वाभिमानी भी थी।

 देवेश का  मानना था कि दोस्ती करना मिलना-मिलाना अलग बात है कितुं शादी तो उससे की जानी चाहिए जो अपने लेवल और सोसायटी की हो,वर्तिका उसके लेवल की नहीं थी।

वर्तिका की माँ दोबारा देवेश के घर जाके बात करती हैं।


 देवेश के पापा- " देखिए एक रिस्ता और भी है जो हमारी हैसियत को ध्यान में रखते हुए अधिक से अधिक दान-दहेज देने को तैयार हैं।

माँ - " हाँ बिल्कुल! क्यों नहीं ? कितुं आपने  तो हमसे कहा था कि हम महीने भर बाद बात करेंगे।"

 पिता जी - "कहा था मगर तय तो नहीं किया था ,वैसे आपकी बेटी अच्छी है कोई कमी नहीं है उसमें मगर आप हमारी अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाएंगी। हमारी सलाह है कि आप अपनी बेटी का रिस्ता अपनी हैसियत के हिसाब से तलाश लीजिये।"


उदास मन से माँ जी घर वापस आती हैं और सारी बाते वर्तिका को  बताती हैं।अगले दिन देवेश से वर्तिका कहती है कि तुम्हारे पापा ने दहेज के लिए, मेरी माँ से ठीक से बात भी नहीं की । इस पर देवेश कहता है की मैं पापा के किसी भी फैसले में दखल नहीं कर सकता । मैं कह चुका हूँ कि वो जैसा समझेंगे वैसा करेंगे, मैं कुछ नहीं कर सकता।

वर्तिका ने कहा कि यदि उसका विवाह देवेश से नहीं हुआ तो वह जीवित नहीं बचेगी,अपनी जान दे देगी।

वर्तिका को मां समझाती है कि बेटा परेशान मत हो मैं माँ हूँ तुम्हारी और फिर तुम्हारे सिवा है ही कौन मेरा वो जो भी कुछ माँग करेंगे हम दे देंगे,जो थोड़ी सी जमीन है वो तुम्हारी ही तो है, उसे तुम्हें ही तो देना है मैं उसे बेचकर  दहेज चुका दूँगी,जिससे तुम्हारी  खुशियां तुम्हें मिल जाएंगी ।

माँ ने फिर से शादी के लिए बात की और उन्होंने जो कुछ भी माँगा वो सब कुछ देकर वर्तिका का विवाह देवेश से करा दिया।

वर्तिका तो बहुत खुश थी क्योंकि उसे तो उसके सपनों का संसार  मिल गया था।

कुछ दिन तो सब ठीक से चलता रहा किंतु धीरे-धीरे देवेश का प्यार कम होने लगा, अब उसे कौन सा वर्तिका का इंतज़ार करना था,उसके रूठने से भी क्या फर्क पड़ता वह तो उसकी पत्नी ही थी, कहाँ जा सकती थी?देवेश के अंदर इसी बात का अहंकार भी हो गया कि वर्तिका तो उसके सहारे ही है, उसे चाहूँ या न चाहूँ रहेगी तो उसकी ही। 

कितुं वर्तिका शादी के बाद भी देवेश को पहले जैसा ही प्यार करती थी।

उसके आने तक वैसे ही इंतज़ार करती जैसे मोहब्बत के दिनों में किया करती थी।

अब तो कुछ महीने बीत गए थे शादी के।


वर्तिका : "देव तुम कितना बदल गए हो, तुम्हें मेरी फिक्र अब नहीं रहती। देखो कितने दिन हो गए हैं हम कहीं घूमने भी नहीं गए कल संडे है तो कहीं चलिये न।"

देवेश : " नहीं कल मुझे किसी खाश व्यक्ति से मिलना है,कुछ जरूरी काम है। और वर्तिका अब तुम्हारी शादी हो गयी है अब तुम्हारे घूमने-फिरने के दिन गए अब तो तुम्हारे लिए घर-परिवार संभालना ही तुम्हारी जिम्मेदारी है। "


देवेश ने  सपना को मिलने के लिए बुलाया था। वह सपना से कहता है कि वह बहुत सुंदर है वह उसे बहुत पसंद करता है मगर पापा से मैं तब तो कुछ नहीं कह सका। 

मगर अब मैं उस पुराने खयालात रखने वाली वर्तिका से ऊब चुका हूँ। 

मगर यदि सपना चाहे तो वह वर्तिका को छोड़ सकता है उसे सपना जैसी लड़की पसंद है, यदि सपना चाहे तो वह उससे शादी कर सकता है,

देवेश की बातों में सपना राजी हो जाती है,

और कुछ दिन बाद छुपकर दोनों शादी कर लेते हैं। 

देवेश किसी तरह से वर्तिका से पीछा छुड़ाना चाहता था। 

आगले दिन करवाचौथ का व्रत था,वर्तिका को मार्केट जाना था जिसके लिए देव के आने का इंतजार कर रही थी मगर देव काफी देर से आते हैं, वर्तिका ने कुछ भी नहीं कहा।

सुबह जब देव ऑफिस के लिए तैयार हो रहे थे तो वर्तिका ने कहा-

"अच्छा सुनो, आज शाम को जल्दी आ जाना।

Ok मैडम.. आ जाऊँगा।

सारा दिन तो पता ही नहीं चला कब बीत गया शाम होते ही मम्मी ने आवाज दी, वर्तिका अरे अब काम छोड़ भी, तैयार होना शुरु करो, चाँद जल्द ही निकल आएगा।

माँ जी  अभी मेरा चांद तो आया ही नहीं मतलब मेरे देव कहा था जल्दी आना, देखो माँ बिल्कुल ध्यान नहीं रखते।उसे फोन तो लगा। जी अभी करती हूँ मगर देव का फोन नहीं लगता है। आज भी बड़े लंबे इंतजार के बाद देर रात से ही घर आते हैं। वर्तिका नाराज तो बहुत थी मगर आज भी कुछ नहीं कहा।

वर्तिका और देव के सम्बंध दिन पर दिन खराब होते जा रहे थे।

एक दिन वर्तिका को अचानक तैयार होते देख देव ने पूछा.. कहाँ जा रही हो? वर्तिका--अपने घर../

देव ने हँसते हुए कहा.. कहाँ है आपका घर..?

वर्तिका--अरे ये तो आपने अच्छा प्रश्न किया, सच में हम स्त्रियों का कोई अपना घर ही कहाँ होता है..शादी के पहले पिता का घर और शादी के बाद पति का घर।

फिर भला मैं कहाँ जा सकती हूँ..आज मुझे एक बात अच्छी तरह से समझ में आ गई कि हर लड़की को अपने घर के बारे में सोचना चाहिए, आत्मनिर्भर बनना चाहिए।पढ़ लिखने के बाद अपना कैरियर और अपना घर सुनिश्चित करने के बाद ही विवाह करना चाहिए.. जिससे भविष्य में अगर पति साथ छोड़ दे तो कभी मायके वापस नहीं जाना पड़े। वह अपने घर में स्वाभिमान के साथ जीवन निर्वाह कर सके।

सच कहूँ वर्तिका तो अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता, तुम पढ़ी लिखी हो स्वाभिमानी हो ,मैं जानता हूँ तुम अपना जीवन आत्मनिर्भर होकर जी सकती हो।इसलिए अब मेरी जिंदगी से चली जाओ तो ही अच्छा है।

देव ये क्या कह रहे हो..? वर्तिका मैं सच कह रहा हूँ मेरा जीवन बर्बाद हो गया है, न मैं खुश हूँ न तो मैं तुम्हें खुश रख पा रहा हूँ। अगर साथ रहना ही नहीं था तो विवाह ही नहीं करते,  वर्तिका वो मेरी भुल थी जो तुमसे शादी हो गई।


देव मैं यह तो जानती थी कि तुम मुझे प्यार नहीं करते मगर यह नहीं जानती थी कि तुम्हारे पास दिल ही नहीं है, जो है वो महज पत्थर।

अब अक्सर ही दोनों में अनबन बनी रहती थी.. धीरे धीरे रिश्ता तलाक तक पहुंच गया।

एक दिन देव ने वर्तिका से कहा--मैं तुमसे तलाक चाहता हूँ।

वर्तिका घबरा गई.. उसने कहा , देव तुम ये क्या कह रहे हो,तुम मुझसे रोज लड़ो, मुझे सारे दुख दो मगर खुद से अलग मत करो।

मैं जिसे सोच भी नहीं सकती थी, तुमने एक पल में उसे कैसे कह दिया।

इस पर देवेश सपना के साथ शादी का सच बता देता है।

देव यह अन्याय है.../वर्तिका मैं न्याय अन्याय नहीं जानता बस यह जानता हूँ कि

जबर्दस्ती से हुए रिश्तों का परिणाम यही होता है।

नहीं देव ऐसा नहीं है, मुझे आज अपने प्यार पे अफसोस है कि मैंने तुम्हें प्यार किया.. तुम्हारे अंदर इंसानियत नाम की कोई चीज ही नहीं..तुम्हारी जिद के आगे

किसी की ज़िंदगी कोई माईने नहीं रखती। पत्थर हो तुम,देव नहीं /

वर्तिका सच में तुम्हारे साथ गलत हो रहा है लेकिन तुमने काम ही ऐसा किया है../

लोग देवता को पूजते हैं पत्थर के रूप में ..तुमने पत्थर को पूजा देव  के रूप में।


आखिर एक दिन डिवोर्स हो ही जाता है......//

आज फिर समय विदाई का था,एक वह दिन जब अग्नि के फेरे लेकर ,जीवन भर साथ निभाने की कसमे लेकर वर्तिका अपने पिता के घर को छोड़कर अपने पति के घर आई थी और आज फिर से एक नई विदाई जो पति के घर से हो रही थी

वर्तिका हाथ जोड़कर कहती है.. कि आज तक मुझसे जो भी गलती हुई हो मुझे माफ करना ,आपके परिवार में आप सबसे बहुत प्यार मिला बस देव के काबिल नहीं थी इसीलिए जाना पड़ रहा है मगर मैं सिर्फ देव की हूँ और हमेशा इनकी ही बनी रहूँगी.. भले ही हमें कितनी दूर रहना पड़े।

साथ छूट जाने से रिश्ते नहीं टूटते......../


कुछ कदम दूर खड़े देव के पास जाकर वर्तिका कहती है कि देव अब तुम सपना को खुश रखना,जो मेरे साथ किया वो उसके साथ मत करना। रिस्ते बनाने से पहले रिस्ते निभाना सीखो,और अब तुमने जो रिस्ता बनाया है उसे जरूर निभाना।

 

तलाक हो जाने के बाद वर्तिका की माँ  वर्तिका को अपने साथ घर ले जाना चाहती थी मगर वर्तिका ने यह कहकर साफ मना कर दिया कि पिता के घर से विदाई हो चुकी है और मैं अब दोबारा वापस नहीं जाऊंगी

मैं स्वयं ही अपना जीवन निर्वाह करूँगी अपना घर होगा जो सिर्फ अपना, आत्म निर्भर बनूँगी मैं अकेले ही अपने सारे सपनों को पूरा करूँगी।

वर्तिका ने गांव से जाकर शहर में एक नौकरी ढूंढ ली और अकेले ही जीवन निर्वाह करने लगी । कुछ दिन बाद वर्तिका अपनी माँ को भी साथ रहने के लिए बुला लिया।

अथक प्रयासों और कड़ी मेहनत के परिणाम स्वरूप वर्तिका का जीवन सफलताओं की ओर उन्मुख होने लगा, धीरे-धीरे वे सारी सुविधाएं हासिल कर ली जिनका वर्तिका का सौख बचपन से ही था। अब उसके शान शौकत में कोई कमी नहीं रह गयी थी।

उसने भी वह सोसायटी जॉइन कर ली जिसे लोग हाई सोसायटी कहकर अहंम रखते थे मगर वार्तिका के अंदर कोई अंहकार नहीं था 

अब तो वर्षों बीत चुके थे देवेश से अलग हुए

हालांकि बीच में एक बार देवेश ने वर्तिका को फिर से साथ रखने की कोशिश की मगर वर्तिका ने मना कर दिया।

अब अगर वर्तिका के लिए कोई प्रिय रह गया था तो वह उसके सपने ही जो कुछ पूरे हो गए थे और कुछ पूरे होने थे।

एक सपना जो पिता जी के न रहने के बाद से ही  जिसे वर्तिका : हकीकत में बदलना चाहती थी

वह सपना था पिताजी की स्मृति में एक विद्यालय। 

अब वह सही समय आ चुका था जब विद्यालय का सपना सार्थक हो गया था।

वर्तिका ने बड़े स्तर पर विद्यालय की स्थापना की।  

बहुमुखी प्रतिभाशाली वर्तिका की पहचान अब उच्च स्तर की हो गयी थी। वो बड़े-बड़े कार्यक्रमों में मुख्यातिथि की भूमिका भी निभाने लगी थी।


ऐसे ही एक दिन कार्यक्रम के दौरान वर्तिका उस जगह पहुँच गयी जहां पर  देवेश भी मौजूद था।

वहाँ भी वह मुख्यअतिथि के रूप में ही उपस्थित थी। वर्तिका देवेश को देखकर भी अनदेखा कर देती है । यह बात देवेश को आहत करती है मगर कर भी क्या सकते, रिस्ता ही क्या था अब, न तो  प्यार न ही विवाह, 

बेबश देवेश की आँखों मे पानी भर आया उसकी आँखों मे यह आँसू पछतावे के थे, वर्तिका को भी उसके पछतावे का एहसास हो गया था मगर वर्तिका अब कमजोर दिल की नहीं थी।

वर्तिका का एक NGO भी था जो खाशकर बेबस स्त्रियों को समर्पित था।

वह नारी को आत्मनिर्भर बनाने पर पूरी मेहनत करती थी ।

वर्तिका आज कुछ भी बोलना नहीं चाहती थी मगर बार-बार आग्रह किये जाने पर 

 वर्तिका ने बताया कि -"प्रत्येक लड़की को आत्मनिर्भर बनना होगा, इसलिए शिक्षा अति आवश्यक है पढ़-लिखकर अपने सपनों को पूरा करिये जिससे आपके मान सम्मान एवं स्वाभिमान को कोई भी हानि न पहुँचा पाए।

वर्तिका जाने लगी तो देवेश ने रोकते हुए-


 "प्लीज वर्तिका मेरी बात सूनो मैं जानता हूँ कि तुमसे बात नहीं करना चाहती।"

 वर्तिका: "देवेश तुम्हें जो भी कहना हो जल्दी कहो,समय कम है और भी काम हैं मेरे पास।"

देवेश : "वर्तिका मैं तुम्हें दोबारा और फिर से हमेशा के लिए अपने साथ रखना चाहता हूँ।"

वर्तिका - "देवेश निर्रथक बात करने से कोई फायदा नहीं है। आप अपने जीवन में खुश रहिये, हमारी शुभकामनाएं हैं।

मगर प्लीज मेरे जीवन में दखल मत दीजिए, और आपके साथ रहने के योग्य मैं नहीं हूँ।"


वर्तिका जाने लगी तो देवेश ने फिर से रोकर कहा कि मेरी बात अभी खत्म नहीं हुई और तुम जा रही हूँ इतनी नफरत तुम नहीं कर सकती।

वर्तिका तुमने ही तो कहा था कि साथ छूट जाने से रिस्ते नहीं टूटते और यह भी कहा था कि मैं देव की हूँ और सिर्फ देव की ही रहूँगी।

फिर आज उस बात को क्यों नहीं मान रही हो, दरसल मैं तुम्हें समझ ही नहीं सका,वो कहते हैं न कि इंसान की कदर उसके बाद ही होती है। हाँ वर्तिका मैं भी तुम्हें तब ही जान पाया जब तुम दूर जा चुकी थी

वार्तिका की आँखों में आँसू आ गए और फिर से वह कमजोर हो गयी,

क्योंकि प्यार कभी भी खत्म नहीं होता भले ही वह नफरत में बदल जाये मगर जीवित रहता है सदा-सदा के लिए। वर्तिका ने देवेश को अगले दिन अपने घर पर बुलाया वह घर जो वर्तिका का अपना घर था,उसका अपना स्वभिमान था।


अगले दिन देवेश वर्तिका के घर जाता है,


वर्तिका: " आइये !  स्वागत है मिस्टर देवेश। बैठिए मैं आपके लिए चाय लेकर आती हूँ।"


कुछ देर बाद हाथों में चाय लिए होठों पर हसीं और आँखों में प्रीति के आँसू।


"जी ! लीजिए चाय पीजिए और क्या लेंगे..?"

देवेश : "जी और कुछ नहीं, शुक्रिया ! आप भी बैठिए।"

वर्तिका : " हाँ देवेश ! तो और बताइये कैसे हैं आप और घर में सब लोग।"

देवेश : "वर्तिका घर में तो सब ठीक है मगर मैं बिल्कुल ठीक नहीं हूँ। तुमने तो अपना पता भी मुझे नहीं बताया फिर भला मेरी खबर कैसे पता करती। इतनी नफरत जो है मुझसे।"

वर्तिका: "क्या करती पता करके सोचा आप सपना के साथ खुश होंगे। फिर मेरा दखल ठीक नहीं, इसीलिए हमने सारे संपर्क खत्म कर लिए थे।"

"देवेश : "नहीं संभाल सका वह रिस्ता भी। मुझे सपना के ढंग बिल्कुल पसंद नहीं थे। हद हो जाने पर मैने वो रिस्ता भी खत्म कर दिया ।


 देवेश हाथ जोड़कर वर्तिका से माफी मांगने लगा देवेश कहने लगा कि वर्तिका तुम चाहो तो मुझे बचा लो अन्यथा मैं अब जीना नहीं चाहता तुम्हारे जाने के बाद हर रोज तुम्हें याद किया ,रोता रहा, पछताता रहा। 3 साल हो गए जिंदगी के इसी तरह के। अब और नहीं वर्तिका!  थक गया हूँ मैं।

अब मेरी जिंदगी तुम्हारे हाथों में है। जो चाहो वो फैसला कर सकती हो।

देवेश जाने लगा वर्तिका देखती रही। देवेश को लगा वह उसे रोकेगी लेकिन वर्तिका ने नहीं रोका।

वर्तिका को माँ ने फिर समझाया कि देवेश को माफ करके अपनी नई ज़िंदगी शुरू करनी चाहिए, 

देव अब तुम्हें सच मे चाहने लगा है,उसे अपनी गलती का एहसास है, मेरी दुआयें सदा तेरे साथ हैं बेटी, रोक ले उसे !

वर्तिका कुछ देर देखती रही, देवेश भी इस उम्मीद से रुका रहा कि वर्तिका उसे जरूर रोकेगी।

वर्तिका देव को गले से लगा फूट-फूट कर रोने लगी।

देवेश: मेरी स्वाभिमानी बीबी रोते हुए बिल्कुल अच्छी नहीं लगती ।"

देवेश वर्तिका को शांत कराते हुए अपने प्यार और रिस्ते को दोबारा हासिल कर लेता है। और फिर दोनों ने मिलकर एक नई जिंदगी की शुरूआत की, वर्तिका जो कुछ भी चाहती थी वह सब कुछ ही पा लिया और वक्त के कुछ घुमाव-फिराव के बाद उसका दामन फिर से खुशियों से भर गया।

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