शीतल बाजपेयी कवयित्री कानपुर
मुँह में सत्ता के निवाले पड़ गये हैं ।
फ़िक्र की फ़ितरत में जाले पड़ गये हैं।
.उल्लुओं ने इसलिए धरना दिया है,
उनके हिस्से क्यूँ उजाले पड़ गये हैं ।
.प्रश्न पूछा है सभा में कुलवधु ने,
सबके मुँह पर कैसे ताले पड़ गए हैं!
.काग ने इतना असर डाला है उस पर,
हंस के सब पंख काले पड़ गये हैं।.
साथ चलना था तुझे ए दर्द ' शीतल'
क्यूँ तेरे पैरों में छाले पड़ गए हैं।
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