एडवोकेट तृषा द्विवेदी "मेघ"
उन्नाव,उत्तर प्रदेश "
हम चिंतन जिस विषय जिस वस्तु अथवा जिस व्यक्ति का करते हैं, मन हमें उन्ही के पास ले जाता है, फिर हम उन्हें पाना चाहेंगे प्राप्ति न होने पर क्रोध होगा,क्रोध से विवेक नष्ट होगा,फिर प्रतिशोध शुरू।
इस तरह हम गिरते जाएंगे।इससे बचने के लिए उच्च बनने के लिये एकमात्र (ईश्वर)आराध्य जो भी माने उन्ही का चिंतन करते रहें।
अन्यथा इंद्रियों के विषय का चिंतन चिता तक साथ जाएगा और जीते जी सभी शुभ कार्यों को नष्ट कर नश्वरता के भंवर में डाल देगा।
इसलिए चिंतन एकमात्र ईश्वर का ही करें शेष भूमिकाओं का निर्वहन।
यही तो है जीवन से आत्मा तक कि यात्रा।
जय माता दी🚩
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