कवियत्री एवं लेखिका
एडवोकेट तृषा द्विवेदी "मेघ"
उन्नाव,उत्तर प्रदेश
(1) हे कालरात्री,मातु पधारो
पीड़ित जनों को,वेग उबारो
सृस्टि संहारक, खड्ग उठाओ
कालों कि काली,काल मिटाओ।
(2)चंड-मुंड देवि,आप सँहारे
शुंभ-निशुंभ भी,आप विदारे।
त्रैलोक काँपे, जब तु हुँकारे
देख विकल रूप,शिवाय हारे
(3)फैली निराशा,आस जगाओ,
जग से करोना,मातु भगाओ
भयमुक्त जग हो,मुक्ति दिलाओ।
खुशी की ज्योती,मातु जलाओ।
(4)रक्तबीज सभी, दानव मारे
भव से सभी को,पार उतारे
गुण बखान सभी,करें तुम्हारे
सुर नर मुनि सभी,भये सुखारे।
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