एडवोकेट तृषा द्विवेदी "मेघ"
उन्नाव, उत्तर प्रदेश
(१) जय जय जय हे गौरी माता,
परिणय-प्रणय,भाग्य सुख दाता।
मोर मनोरथ जानहुँ मइया,
पार लगाओ प्रीति कि नइया।।
(२) दुख सारे कर दो माँ विस्मृत,
दो मेरी तृष्णा को पयमृत।
कब से हूँ दरबार तुम्हारे,
मातु सँवारो भाग्य हमारे।।
(३) आदि शक्ति हे मातु पुरातनि,
दुख,भय,संकट हरो सनातनि।
महिमा अखिल विश्व ने जानी
जय जय जय जगदम्ब भवानी।।
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