मनीष मिश्रा - लखनऊ
लखनऊ। गौरांग क्लिनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथी रिसर्च के संस्थापक व वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ गिरीश गुप्ता की पुस्तक एविडेंस बेस्ड रिसर्च ऑफ होम्योपैथी इन डर्मेटोलॉजी Evidence-based Research of Homoeopathy in Dermatology की समीक्षा नेशनल जर्नल ऑफ़ होम्योपैथी के जनवरी 2021 के अंक में प्रकाशित की गई है। ज्ञात हो इस पुस्तक में चर्म रोगों के होम्योपैथिक इलाज के बारे में वैज्ञानिक सबूतों सहित पूर्ण विवरण दिया गया है।
डॉ रश्मि नागर व उनकी टीम द्वारा की गई इस समीक्षा में किताब की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि पुस्तक में डॉ गिरीश गुप्ता के 35 साल से ज्यादा के अनुभव की झलक साफ दिखती है। किताब में इतने रोचक ढंग से सामग्रियों को प्रस्तुत किया गया है जिसे देखकर रिसर्च की सफलता को आसानी से समझा जा सकता है।
समीक्षा में बताया गया है कि पुस्तक में विटिलिगो यानी ल्यूकोडर्मा (सफेद दाग), सोरियासिस (इसमें लाल परतदार चकत्ते हो जाते हैं), एलोपीशिया एरियटा (इसमें बाल झड़ने लगते हैं), लाइकिन प्लेनस (इसमें त्वचा पर बैंगनी कलर के दाने हो जाते हैं), वार्ट (वायरल इन्फेक्शन), मोलस्कम कॉन्टेजियोसम (वायरल इन्फेक्शन) तथा माइकोसेस ऑफ नेल (नाखूनों में फंगस इन्फेक्शन) के मरीजों पर की गयी रिसर्च उसके परिणाम और कुछ मॉडल केस के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी है। उपचार से पूर्व, उपचार के दौरान और उपचार के बाद के फोटो रिसर्च की सफलता की कहानी खुद ब खुद बयां करते हैं। समीक्षा में होम्योपैथी की मूल भावना क्लासिकल विधि से किए गए इलाज की प्रशंसा करते हुए बताया गया है कि मात्र एक दवा से किस तरह स्थाई परिणाम मिले हैं।समीक्षा में कहा गया है कि डॉक्टर गिरीश गुप्ता का कहना है कि होम्योपैथी दवाओं की स्वीकार्यता के लिए यह आवश्यक है कि इससे मरीजों के उपचार का रिकॉर्ड रखा जाए ताकि किसी भी मंच पर सफल इलाज की प्रामाणिकता सिद्ध की जा सके और होम्योपैथी को वह स्थान दिलाया जा सके जिसकी वह हकदार है। डॉ गुप्ता का कहना है कि दवा से लाभ होने के साक्ष्य न होने का अर्थ यह नहीं है कि दवा फायदा नहीं करती है।समीक्षा में कहा गया है कि इस पुस्तक में दी गयी सामग्री को देखकर डॉ गुप्ता की अपने कार्य के प्रति जुनून और समर्पण की भावना परिलक्षित होती है। एक और रोचक बात यह है कि लॉकडाउन के समय जब समारोह का आयोजन किये जाने पर रोक थी, उस अवधि में इस पुस्तक का लोकार्पण डॉ गुप्ता के पौत्र ने अपने जन्मदिन की पहली वर्षगांठ पर किया। कह सकते हैं कि अपने दादा के पद चिन्हों पर चलने के लिए मानो पौत्र ने एक कदम बढ़ाया हो।समीक्षा में कहा गया है की यह किताब होम्योपैथिक के सभी विद्यार्थियों, प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों, शोध करने वालों, त्वचा रोग विशेषज्ञों के साथ ही होम्योपैथी को संदेह भरी नजरों से देखने वालों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। समीक्षा के अंत में लिखा गया है कि डॉ गुप्ता के दूसरों को प्रेरणा देने वाले इस कार्य को निश्चित ही चिकित्सा के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।
Comments
Post a Comment