स्मिता श्रीवास्तवा
कवयित्री- लखनऊ
हे मौत
तू तो निश्चित है, परन्तु ज़िम्मेदारी पूरी होने तक बख़्श दो
हम सब हैं धरती के पापी, थोड़ा ठहरो अभी कुछ और दण्ड दो...
अभी ना छीनो बच्चों के पिता को,उसके निवाले से पेट को भरने दो..
अभी छोड़ दो माँ को,उसके आँचल के छांव तले शिशुओं को पलने दो..
ना सूनी करो एक माँ की गोद,उसे वात्सल्य का सुख लेने दो..
हे मौत हम सब सुधरेंगे, करेंगे प्रकृति की रक्षा..
अधर्मी हृदय होगा परिवर्तित, करेंगे पवित्र आत्मा की सुरक्षा..
दूर होगा ये दूषित वातावरण, होगी पुनः स्वच्छता की स्थापना..
हे मौत थोड़ा समय दो, हे मौत जिम्मेदारी पूरी होने तक बख्श दो...
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