यस. एन. पाण्डेय ब्यूरो चीफ गोण्डा
वित्तीय सेवा प्रभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार ने वर्ष 2020 की शुरुआत में अतिरिक्त सचिव, वित्तीय सेवा प्रभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ समिति का गठन ग्रामीण बैंकों को ग्रामीण साख तथा ग्रामीण विकास के लिये बेहतर उपयोगी बनाने हेतु उनको पुनर्गठन के द्वारा सशक्त बनाने के लिए किया था।
उक्त कथित समिति ने अभी हाल में ही अपनी रिपोर्ट कुछ प्रतिगामी प्रस्तावों के साथ सौंप दी है तथा विश्वस्त सूत्रों के अनुसार यह लागू होने की प्रक्रिया में है।
रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान 43 ग्रामीण बैंकों को तीन समूहों में विभाजित किया गया है (A,B & C) और इन तीनों समूहों के लिए भिन्न-भिन्न कार्ययोजना का सुझाव दिया गया है, मुख्य जोर *भारत सरकार की अँशपूँजी* (शेयर कैपिटल) {जो वर्तमान में समान रूप से सभी ग्रामीण बैंकों में 50% है} को प्रायोजक बैंक को अंतरित करना, जिनकी वर्तमान में हिस्सेदारी सभी ग्रामीण बैंकों में 35% है, इस तथ्य को दरकिनार करते हुए कि अभी तक भारत सरकार/रिजर्व बैंक/नाबार्ड द्वारा गठित विभिन्न समितियों, वित्तीय मामलों की स्थायी संसदीय समिति सहित सभी ने ग्रामीण बैंकों को प्रायोजक बैंकों से असंबद्ध करने की संस्तुति की है जो अभी तक स्वामी सह प्रतिस्पर्धी की भूमिका में रहे हैं तथा ग्रामीण बैंकों के हर कष्ट और असुविधा के लिये उत्तरदायी हैं।
अतिरिक्त सचिव, वित्तीय सेवा प्रभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के नेतृत्व में गठित वर्तमान समिति ने भी जबकि अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों को पूरा करने के मामले में ग्रामीण बैंकों की सराहना की है तथापि उपरोक्त तथ्यों के बावजूद दुर्भाग्य से प्रायोजक बैंकों को ग्रामीण बैंकों की 85% हिस्सेदारी सौंपने के प्रतिगामी सुझावों की अनुशंसा की है, मात्र 15% हिस्सेदारी संबन्धित राज्य सरकारों के लिये छोड़ी गई है।
हमारा संगठन (AIRRBEA) जोकि ग्रामीण बैंकों में 75% से अधिक कार्यबल का प्रतिनिधित्व करता है, हमेशा से ग्रामीण बैंकों को समेकित करके, प्रायोजक बैंकों से पूर्णतः असंबद्ध, एक शीर्ष संस्था के अधीन राज्यस्तरीय ग्रामीण बैंकों के गठन की हमारी माँग रही है जिससे कि आगामी चुनौतियों जैसे वित्तीय समावेशन, माइक्रो क्रेडिट, कुल मिलाकर ग्रामीण वित्तपोषण तथा कृषि विकास में ग्रामीण बैंकों को अधिक उत्तरदायी, अधिक शक्तिशाली बनाया जा सके।
यदि सभी ग्रामीण बैंकों का समग्रता से आकलन किया जाये तो ग्रामीण बैंकों ने अभी तक 40 करोड़ ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों की आबादी को आच्छादित किया हुआ है और इनका प्रदर्शन वित्तीय मापदंडों पर उल्लेखनीय रहा है। परन्तु यह दुखद है कि राष्ट्रीयकृत व्यावसायिक बैंकों की तुलना में भारत सरकार द्वारा ग्रामीण बैंकों को वित्तीय सहयोग नगण्य ही है। उदाहरणस्वरूप पिछले ग्यारह वर्षों में NCBs को प्राप्त जानकारी के अनुसार वित्तीय सहयोग ₹ 3, 35, 000/- करोड़ के आसपास बैठता है जबकि यही ग्रामीण बैंकों को ग्रामीण बैंकों की स्थापना से अब तक 45 वर्षों में कुल मिलाकर ₹ 7,000/- करोड़ का भी वित्तीय सहयोग नहीं मिला है।
हमने पहले ही दिनाँक 22.05.2021 को ग्रामीण बैंकों के पुनर्गठन और आवश्यक वित्तीय सहयोग पर उक्त माँगें प्रमुखता से उल्लेख करते हुए माननीय वित्त मंत्री, भारत सरकार के समक्ष अपने विचार प्रस्तुत कर दिये हैं, जिसकी प्रति साथ ही संलग्न है।
हमारे संगठन ने माननीय सांसदों तथा प्रत्येक राजनीतिक दल के जनप्रतिनिधियों से संपर्क सहित देशव्यापी आन्दोलन प्रारंभ करने का निर्णय लिया है जिससे कि सरकार पर इन प्रतिगामी प्रस्तावों को वापस लेने के लिए दबाव बनाया जा सके और आवश्यक कदम
हमारी माँग *राज्यस्तरीय ग्रामीण बैंकों के गठन* (पूर्वोत्तर हेतु एक बैंक) तथा *NRBI/NABARD* के अधीन प्रायोजक बैंकों से पूर्णतः मुक्त भारत सरकार के स्वामित्व वाली, जैसा कि वर्तमान में है और प्रायोजक बैंकों की हिस्सेदारी शीर्ष संस्था को सौंप दी जाये।
एस. वेंकटेश्वर रेड्डी महासचिव, AIRRBEA, शिवकरन द्विवेदी महामंत्री, NFRRBE, अब्दुल सईद खान, महामंत्री, NFRRBO
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