शीर्षक : अलंकारिक दोहे
यमक अलंकार
करके यह अलि पान मनु, अलि से बदतर होय।
बनना है तो अलि बनो, प्रीति अमर जग होय।।
अहि पर जितने अहि बसे, मारो उनको बाण।
या बनकर अहि ही डसो, तुरतहिं निकले प्राण।।
उपमा+अनुप्रास
प्रभा अलौकिक सोम सी, सुन्दर सुर-सरि नीर।
गोरी तेरा बिम्ब ही, हरता मन की पीर ।।
रूपक अलंकार
तात पाद सुर चरण हैं, पूजें जन जो ध्यान।
होवें प्रसन्न देव भी, बढ़ें शान व मान ।।
उत्प्रेक्षा अलंकार
तीन सौ सत्तर हट गई, पत्थरबाजी गोल।
मानहुँ सबने पी लिया, प्रेम-शांति का घोल।।
श्लेष अलंकार
कहता नीरज देख लो, यह जग अवि दो पाय।
इक पूजा नामे कटे, दूजा पूजा जाय ।।
नीरज कुमार द्विवेदी
गन्नीपुर-श्रृंगीनारी
बस्ती-उत्तरप्रदेश
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