✍️ एडवोकेट तृषा त्रिवेदी "मेघ"
रायबरेली - उत्तर प्रदेश
(1) जाने किस उन्नति के पीछे कर रहें अपनों से छल
न्याय हिस्से में है उसके है भुजा में जिसके बल
कौन किसके पक्ष में हर शख्स बिकता जा रहा। ।
(2) एक चेहरे पे कई चेहरे लगा के घुमते
बुद्धिमानी से कई मासूमों को हैं लूटते
स्वार्थ के खातिर है इंसा कितना गिरता जा रहा।।
(3) दंभ का पाखंड कर सर्वस्व खुद को मानते
दूसरा उनसा न कोई भ्रम यही बस पालते
झूठ की शक्ति के आगे सत्य झुकता जा रहा।।
(4) राम का गुणगान है पर मन कपट से है भरा
राम ही बस सत्य है यह ध्यान भी है न जरा
चाटुकारी बनके अब जीवन संवरता जा रहा।।
(5) लाभ के आगे न दिखता दोष या नाता कोई
हँसके लग जाते गले जब सफल होता कोई
मेघ इतना ही समझ कलियुग है बढ़ता जा रहा ।।
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