--मीनू मदान, नवी मुंबई
तुम्हारे मखमली आसन का
चतुष्पाद हूँ मैं
तुम्हारे उर्वरा खेतों की
चिर खाद हूँ मैं
तुम्हारी अट्टालिकाओं की नींवों में
दफ़न है मेरा स्वेद
रक्त तुम्हारा लाल है
मेरा सफेद
तुम्हारी दीवाली की जगमगाहट में
कैद है मेरा अँधेरा
तुम्हारे दिन की उजियाली में
उदास है मेरा सवेरा
तुम्हारे उल्लास की फसलों को
मैं आँसुओं से सींचता रहा
तुम्हारी सुविधा की हर गाड़ी
मैं पहिया बन खींचता रहा
ईश की पैदाइश हूँ मैं
या कि उसकी भूल हूँ
मैं तुम्हारे पाँवों में
सदियों से लिपटी धूल हूँ
सुनो!
इस धूल को आज माथे पर सजाओ
अपनी सभ्यता के शीर्ष पर
मेरा भी नाम लिखाओ
मत भूलो
सर्वनाशकारिणी प्रकृति की
कंदुक-क्रीड़ा
तुम आज समझ लो
मेरे भीतर
चिर- संचित सारी पीड़ा
लो आज कोरोना ने फाडा
मेरा सीना
मैं मरा तो मुमकिन ना होगा
तेरा जीना
मैं आज बड़ा बेबस हूँ , मैं मजबूर हूँ
मैं चिरसंगी हूँ तेरा, मैं मजदूर हूँ ।
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